कानून तो वापस लेकिन किसानों की मौत का जिम्मेवार कौन
केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है, वहीं सरकार के इस फैसले पर लोगों ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। झामुमो नेत्री सोनी चौरसिया ने इन फैसलों के पीछे उपचुनावों में मिली हार का नतीजा करार दिया है। उन्होंने कहा कि झामुमो इन कानूनों का पहले ही विरोध कर रही थी और ये कानून किसानों के हक में नहीं है। केंद्र सरकार ने ये कानून वापस तो लिए हैं, लेकिन आंदोलन की वजह से 7 सौ किसानों की जानें गई है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है? यदि ये कानून नहीं लाए गए होते तो इन किसानो की मौत नहीं होती और ये किसान भी अपने परिवार के साथ होते। बताया भाजपा में लोकतंत्र का भी अभाव है। यहां आपस में न विचार मिलाये जाते हैं और न हीं किसी निर्णय के लिए पहले कोई बैठक हीं होती है। न कभी अपनों का भी विचार जानने की कोशिश। कृषि कानून आये भी आननफानन में और उसे वापस भी उसी तरीके से लिया गया। इसी तरह नोटबन्दी समेत जितने भी महत्वपूर्ण निर्णय हम इस सरकार का देखें सभी में लोकतंत्र का अभाव दिखा। बस साहब आये और देश को निर्णय सुना दिया। बताया यह तो धन्य है कि चुनाव है यूपी समेत कुछ राज्यों में साहब को समझ में आ गया कि किसानों की अनदेखी क्या गुल खिलाने वाली है। अब देश को समझ में आ गया कि परजीवी कौन है, आतंकवादी कौन है। जिस पार्टी के लोगों ने धरने पर बैठे किसानों को आतंकवादी कहा, उसे कुचला, उसके सामने कीलें ठोकी, पानी बंद किया, बेरिकेटिंग लगवाए लेकिन साहब की जुबान तक न खोली। अब जब उन्हें चुनाव में किसानों की नाराजगी का असर महसूस हो रहा है तो माफ़ी मांग रहे हैं। क्या इस देश के लोग इतने गये गुजरे हो गए हैं कि जब जो चाहे कर के लोग बस माफ़ी मांग ले। मेरा मानना है कि आज से साहब की उलटी गिनती शुरू हो गई है।