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मुस्लिम जमींदारों ने की 1800 ई. में पूजा की शुरुआत 

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मुस्लिम जमींदारों ने की 1800 ई. में पूजा की शुरुआत 

मिर्ज़ागंज-बदडीहा मंडप आपसी भाईचारे का प्रतीक 

होते हैं यहां कई अनूठे कार्यक्रम 

जमुआ/जन की बात

संभवतः सन् 1800 का काल जब अंग्रेजी हुकूमत शुरूआती दौर में था। यहां के निवासी ख़ासकर साहू, भूमिहार, माहुरी व अन्य जाति के लोगों के विशेष आग्रह पर तत्कालीन मुस्लिम जमींदार ख़्वाजा वाहिद ने यहां विधिवत मां की पूजा की शुरुआत की थी। हालांकि कुछ लोगों में यहां की पूजा की शुरुआत को लेकर मतभिन्नता भी है। लेकिन इन मतभिन्नताओं से परे मां के प्रति आस्था सभी के दिलों में समान रूप से है।

आकर्षित करता है भव्य दूधिया मंदिर

पहले जहां मिट्टी के बने मंदिर में पूजा होती थी तो कालक्रम में खपरैल और पक्के संयुक्त मंदिर का निर्माण हुआ। वर्तमान में यहां पूरे सूबे में नामचीन राजस्थानी शैली का भव्य दुधिया मंदिर स्थापित है। जिसका निर्माण मिर्ज़ागंज के स्टील व्यवसायी मोहन साव के द्वारा किया गया है।

लोग बताते हैं कि विजयादशमी के आयोजन में मुस्लिम जमींदार अपने पूरे परिवार के साथ पूजा-स्थल पर मौजूद रहते थे तथा परंपरा के अनुसार ब्राह्मणों के द्वारा मिले आशीर्वाद को पूरी आस्था के साथ ग्रहण कर चांदी के सिक्कों का वितरण भी करते थे।

“आपसी सहभागिता से होता है आयोजन”

लोग बताते हैं कि शुरुआत में पूजा का खर्च लकड़ी और गुड़ के हाट से आनेवाली आमदनी से होती थी। बाद में सार्वजनिक तौर पर चंदा कर पूजा की व्यवस्था की जाती है। पूजा विधि को लेकर वैष्णवी और गैर वैष्णवी पर तर्क भी हुआ लेकिन गैर-वैष्णविओं की संख्या अधिक होने के कारण यहां शुरुआत से हीं गैर वैष्णवी विधि से मां की पूजा की जाती रही है। हालांकि वैष्णवी के समर्थक भी अपनी विधि विधान से यहां मां के चरणों में शीश नवाते हैं।

“बंद हुई भैंसों की बलि”

लोग बताते हैं शुरुआत में वर्षों तक यहां भैसों और भेड़ों की बलि देने की प्रथा रही। वर्ष 1972 में एक सरकारी आदेश के बाद यहां के तत्कालीन मुखिया रामकिशुन साहू के द्वारा यहां भैसों की बलि पर रोक लगा दी गयी थी। वर्तमान में यहां कलश-स्थापन के साथ हीं बकरों की बलि देने की प्रथा है। नवमी के दिन यहां तकरीबन हर गैर वैष्णवी परिवार से बकरे की बलि समर्पित की जाती है।

“मंदिर की महिमा दूर-दूर तक” 

वर्षों तक क्षेत्र के 50-50 मील की परिधि में सिर्फ़ इसी स्थान पर दुर्गा-पूजा मेले का आयोजन होता था। लिहाजा दूर-दूर के गांवों के लोग यहां पूजा देखने व मेला घूमने के लिए आते थे। वर्तमान में अनेक स्थानों में पूजा और मेले का आयोजन होने से यहां की भीड़ थोड़ी बंटी जरूर है, बावज़ूद इस मंदिर की महिमा अभी भी पूरे क्षेत्र में चर्चित है। दूसरे दर्जनों गांवों के भक्तगण भी यहां पूजा-अर्चना को आते हैं। हजारों श्रद्धालुओं से पट जाता है यहां का मंदिर परिसर।

“चर्चा में रहता है यहां के कार्यक्रम और उम्दा सजावट” 

यहां की दुर्गा पूजा समिति काफ़ी सक्रिय है। समिति के सभी सदस्य पूरे समर्पण भाव से मां का दरबार सजाने में लगे रहते हैं। इस वर्ष यहां जस्ट डांस धमाल, डांडिया और गरबा, गंगा आरती के तर्ज पर महा आरती के विहंगम कार्यक्रम के अलावा प्रसिद्ध भोजपुरी गायिका निशा दुबे का भी कार्यक्रम है। यहां कार्यक्रमों में अत्यधिक भीड़ उमड़ती है जिसे सम्हालने को लेकर समिति के सदस्यगण और प्रशासन को विशेष मशक्कत करनी पड़ती है। अन्य वर्षों की तरह इस वर्ष भी मंदिर हीं नहीं पूरे मिर्जागंज, जगन्नाथडीह और बदडीहा की सड़कों को एलईडी और पिक्सल लाईटों से सजाया गया है। नवरात्रा की शुरआत से हीं यहां हर दिन लंगर और भजन-प्रवचन जैसे कार्यक्रम चलते रहते हैं।

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